नहाये धुले तुम
दुखी अपने मन को , हंसा जो पाओ तो
इतने सारे लोगों में चीखते तो हो
पर अपनी मन की बात , किसी को बता जो पाओ तो
हर एक सुबह सबके सामने हँसते तो हो
झूटी अपनी उस हँसी को छोड़
सच्ची मुस्कान चेहरे पे अपने ला जो पाओ तो
अपना दे के मोल
किसी और को खुशी दे जो पाओ तो
खुशी उसकी देखकर
आंखों से तुम्हारी
दो बूँद खुशी के
कभी छलक के आएं तो
कभी किसी के लिए बिना ही मतलब के
सहाय हो जो पाओ तो
किसी अपनी बात से कभी
नवजात को किसी
हंसा जो पाओ तो
गर्म धूप से
थक के होके चूर , भीग कर पसीने में
घनी पेड़ की छावं पा जो पाओ तो
प्यासे अपने गले को, सुराही के पानी की ठंडक समझा जो पाओ तो
ठंडी उस पेड़ की हवा में ज़मीन पर वहीँ सो जो पाओ तो
रास्ते में खड़े
मैले कुचेले भीखारिओं से
न डर जो पाओ तो
ग़लत देख सुन के सही जो बोल पाओ तो
चुप रह के देखने और सुनने के सिवा
कोई और इलाज इस बीमारी का जो ढूंढ पाओ तो
लाख कोशिश कर बीते हुए अपने दिनों को
ढूंढ कर ला जो पाओ तो
जो पल बीते उनको
यादों में सहेजने के सिवा कुछ और कर जो पाओ तो
चाहिए क्या तुम्हे अपने जीवन से
बस इतनी सी बात पता कर जो पाओ तो
अपनी ऐसी इसी बीतते हुए जीवन का कभी
भविष्य जो देख पाओ तो
देख के निश्चिंत हो जो पाओ तो
बताना ज़रूर
1 comments:
good collection of poems and thought,but pl give some extension to poems.my best wishes.
yours
dr.bhoopendra
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