जब मेरे बचपन के दिन थे , चाँद में परियां रहती थी
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थी
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थी
एक ये दिन जब लाखों ग़म और अकाल पडा है आंसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थी
मुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियां रहती थी
मुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी
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