प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला
... हमेशा व्याकुल रहते हैं चाहते हैं की दूर हो जाए सब कुछ हमसे जब हम नहीं पा पाते हैं ।
किसी से बात करने की इच्छा नहीं होती ... पर फ़िर वही जीवन वही पाने की आस या कहें प्यास या तृष्णा ...
करते रहना पड़ता है कभी अपने लिए और बहुत बार तो पता भी नहीं चलता है की हम दूसरों के लिए कुछ करने केलिए मजबूर हो जाते हैं ... किसी न किसी के लिए किसी न किसी रूप में resource होते हैं ...और भलाई भी इसी में है ...की धीरे धीरे न इच्छा होते हुए भी ...
" WE LET LIFE CONSUME US ! "
0 comments:
Post a Comment