पहले अमुक व्यक्ति अपना अमुक काम कर ले उसके बाद जनाब उनका काम देख कर अपना काम पूरा करेंगे ...
... और उनके पास अपने इस बात को सत्य सिद्ध करने के लिए कई बातें रहती हैं ... जैसे ... " भई ! देख दुनिया में सौ में से चार ही लोग रहते हैं जो अपना काम स्वयं करते हैं अपनी एक पद्धति को अपना कर , और बाकी सब उनके क़दमोंपर ही चलते हैं "
... देखा अपनी अक्षमता को कितने अच्छे शब्दों में ढाल दिया ...
पर अगर देखा जाए तो सच भी है ... ऐसा नहीं होता है कभी की जीवन जीने के सारे गुर या काम करने के सारे गुरआपको पता ही हों या हमेशा जिम्मेदारी से रहित हों ... आप कहीं न कहीं किसी न किसी को देख कर कहीं न कहींकुछ न कुछ पढ़ कर ही सीखते हैं । बात यहाँ तक हो तो ठीक है ...
... पर हद तो तब हो जाती है जब you are driven by "Control+C" and "Control+V".... और धीरे धीरे आपको ख़ुद ही लगने लगता है की ..."आए थे हरी भजन को , ओटन लगे कपास "
... ये भी तब जब अगर गलती से सद्बुद्धि आ जाए ।
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