एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला, भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला, छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था, विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला, भांतिभांति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला, एक से बढ़कर एक , सुन्दर साकी ने सत्कार किया, जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला, प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला, दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ, व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला
करतेरहनापड़ताहैकभीअपनेलिएऔरबहुतबारतो पता भीनहींचलताहैकीहमदूसरोंकेलिएकुछकरनेकेलिएमजबूरहोजातेहैं ... किसीनकिसीकेलिएकिसी न किसी रूपमें resource होतेहैं ...औरभलाईभीइसी मेंहै ...कीधीरेधीरेनइच्छाहोतेहुएभी ...
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला; 'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला| हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे; किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला||
पहलेअमुकव्यक्ति अपना अमुककामकरलेउसकेबादजनाबउनकाकामदेखकरअपनाकामपूराकरेंगे ...
... औरउनकेपासअपनेइसबातकोसत्यसिद्धकरनेके लिए कईबातेंरहतीहैं ... जैसे ... " भई ! देख दुनियामेंसौमें से चारहीलोगरहतेहैंजोअपनाकामस्वयंकरतेहैंअपनीएकपद्धतिकोअपनाकर , औरबाकीसबउनकेक़दमोंपरहीचलतेहैं "